Monday, August 31, 2020

बचपन


दिल के कोने में मेरे कहीं
मासूम सा इक बच्चा रहता है
तेज़ी से गुज़ारे इन सालों को
जो कुछ कश्मकशमकश से देखता है
भोली सी मुस्कान लिये
जबरन ही मुझे बचपन में मेरे खींच ले जाता है
दिल के कोने में। ...
याद दिलाता हैं मुझको वो नन्ही सी एक गुड़िया
इधर दौड़ती, उधर भागती
गुड़ियों के बीच खेलती
नन्ही सी, प्यारी सी गुड़िया वो
उड़ती  फिरती तितलियों की तरह जो
तो आंख मिचोली खेलती
पेड़ो के बीच कभी वो  ...
हाथों में गुलाल, कभी पिचकारी लिए
रंगों का अपने एक सैलाब लिए
या फिर फुलझड़ियों से आकृतियां बनाती हुई।
और फिर कभी सर्द भोर में कोहरे से छिपती निकलती
स्कूल की और जाते हुए। ..
या बरसात की पहली बूंदों में कागज़ की अपनी नावें
दौड़ाती हुई। ...
पर देखती हूँ उसे आज तो
दिल में इक टिस  सी उठती है
पकड़ना चाहती हुँ उसे तो
तितली बन उड़ जाती है
न जाने कहाँ खो जाती है

कहतें हैं बीता वक़्त
फिर कभी लौटता  नहीं
पर लौट जाने को बहुत मन  करता है
बचपन की उन गलियों में।
पल वो मासूमियत के
फिर एक बार जी लेने को
वो बिन माँगा अथाह प्यार पा लेने को
खुद को एक बार फिर ढून्ढ लेने को...

बंधन

लहर हूँ मैं
तुम किनारा
मेरा आकर तुमसे मिलना
मिलकर फिर बिछड़ जाना
बरसों का यह सिलसिला
हर बार छूट जाता है
कुछ मेरा
और साथ आ जाता है
कुछ तुम्हारा
हर मुलाक़ात पहचान को बना देती है पुराना
यादों का दे जाती है है कारवाँ 

यूँ ही बार बार का मिलना
फिर बिछड़ जाना
न होकर भी बना देता है इक अटूट नाता
लहर हूँ मैं तुम किनारा
नाता हैं हमारा सदियों पुराना...

मैं और् तुम्


मैं मैं रहूँ
तुम् तुम् रहो
फिर् भी हम् हम् रहें
सन्ग् सन्ग् चले
क्या ये मुम्किन् है?

मैं और् तुम्
कि आहुति क्या आज् भी ज़रूरी है
हम् के अस्तितिव के लिये?

पर् गर् मुझ् मे मैं नही
और् तुम् मे तुम् नही
ऐसे फिर् हम् की हस्ती भी क्या?

मैं मैं रहूँ
तुम् तुम् रहो
फिर् भी हम् हम् रहें
सन्ग् सन्ग् चले
आओ एक् कोशिश् करे...


सिफ़र्


मै और् तुम्
तुम् और् मै…
और् इश्क़् सिफ़र् सा
सफ़र् रुहानीयत् का
खो कर् खुद् को
हासिल् सब् कर् लेने का
मै और् तुम्
तुम् और् मै…
इश्क़् सिफ़र् सा
फिर् भी कित्ना मुक़म्मल् सा...

                                

Saturday, August 29, 2020

तेरे मेरे दरमियाँ ...


कुछ अनकहा सा,
कुछ अनसुना सा,
कुछ अनछुआ सा,
कुछ अनजाना सा,
हैं तेरे मेरे दरमियाँ


कुछ मीठा सा,
कुछ खटा सा,
कुछ प्यारा सा,
कुछ नादान सा,
हैं तेरे मेरे दरमियाँ


थमा हैं एक तूफ़ा
हाँ, थमा हैं एक तूफ़ा
तेरे मेरे दरमियाँ ….
बस तुम. . .


बातों में,
ख्यालों में,
जज़्बातों में तुम...

सोने में,
जागने में,
खोने में,
पाने में,
होने में,
न होने में तुम ...

तुम्हीं कहो ...
छिपाऊँ कैसे
कहाँ तुम्हे.मैं ..
हर लम्हे, हर सांस में मेरी
बसे हुए हो तुम...
रूह मेरी बन गए हो तुम ...
खत् तुम्हारे


हां, पढ लिये खत् वो सारे
जो तुमने लिखे पर् कभी भेजे नही...

कहा था तुमने
एह्सासो को अल्फ़ाज़ो मे क़ैद् नही करते
बाते सारी यु बय़ान् नही करते
ऱाज़् पर् कुछ छुपते नही
एह्सास् क़ैद् होते नही...

हां पढ लिये खत् वो सारे
लिखती रही हैं हर पल निगाहें तुम्हारी
हर अलफ़ाज़ , हर वक़्फ़ा, हर विराम
हर कोलाहल और खामोशी
दर्द और नमीं तुम्हारी
आत्मसात करती रही हूँ मैं
हाँ, तुम्हे पढ़ती रहीं हूँ मैं ...
ख़ामोशी


तुम् और् मैं
मैं और् तुम्
बस् कुछ ख़ामोशी और् चन्द् सवाल्
ख़ामोशी जो टूटेगी शायद् न कभी
सवाल् जो पूछे जायेंगे ना कभी…

तुम् और् मै
मै और् तुम्
कुछ अनकहे जज़्बात्
कुछ अनसुलझे एह्सास्…

तुम् और् मैं
मैं और् तुम्
और् खामोशियों का एक सिलसिला ...

 नदी और् किनारा


 मैं और् तुम्

तुम् और् मैं

नदी के दो विप्रीत् किनारे..


चलतें मीलो संग संग 

सिमटे अपने ही दायरो मे…

मिलते नही..

बंधे है, फिर् भी

नदी  की हर् धारा से,

हर् लहर से...


मैं और् तुम्

तुम् और् मैं...

नदी  और् किनारे से ...

 भ्रम्र  और् हक़ीक़त्


मै और् तुम्

एक् भ्रम् या फिर् हक़ीक़त्

दिखता  हो जो

छू सकतें हो जिसे

है गर् हक़ीक़त् वही

तो मेरा तुम्हारा 

तो कोइ अस्तितिव् ही नही...


पर् फिर् 

क्यु न होकर् भी 

एह्सास् तुम्हारे होने का

होता है अक्सर्

और् मिलकर भी कभी

दर्मियान् होते है फ़ासले  कई ...


मै और् तुम्

तुम् और् मै

न भ्रम्, न वहम्

बस् एक् हक़ीक़त्

 कुछ मुतलिफ़् सी...



 वो मौन अनुमोदन 


पलाश की कुछ पंखुडियां

सिमटी मिली पुराणी किताब की एक तह में

याद करा गयी

कुछ लम्हें, कुछ पल

वो बीती एक बहार  के... 

 

याद हैं वो पल

जब अरमानों की कुछ पंखुडियां खिलीं थीं

श्वेत शांत मन में कुछ

हलचल हुई थी

रंग की कुछ बूदें गिरीं थीं

 

वो आंखों का स्पर्श किस्सी का

वो कुछ कहकर भी

सब कुछ कह देने की कोशिश

फिर वो मौन अनुमोदन ...

वो इंतज़ार, वो अनकही मुलाक़ात

फिर जैसे खुद को खुद से हे छिपा लेने की कोशिश...

 

यादें हैं वो

बीते हुए उस कल की

नाज़ुक उन ख्यालों की

गुनगुनाए कुछ गीतों की

लहराती उस सतरंगी चुनर की

बेरंग हो गयी जो

अब पलाश की ही पंखुड़ियों सी...

 



Bachpan

  Kaun ho tum Kya ho tum Poochoge to nahin   Humse kabhi Kyunki… Bayaan raaz hote nahin Main aur tum Tum aur main Ishq sifar sa Safar ruhani...

Khat Tumhaare