Wednesday, May 25, 2022

 

Kaun ho tum

Kya ho tum

Poochoge to nahin 

Humse kabhi

Kyunki…

Bayaan raaz hote nahin

Main aur tum

Tum aur main

Ishq sifar sa

Safar ruhaniyat ka

Karam us khuda ka

Main aur tum

Tum aur main

 

बचपन

दिल के कोने में मेरे कहीं

मासूम सा इक बच्चा रहता है

तेज़ी से गुज़ारे इन सालों को

जो कुछ कश्मकशमकश से देखता है

भोली सी मुस्कान लिये

जबरन ही मुझे बचपन में मेरे खींच ले जाता है

दिल के कोने में। ...

 

याद दिलाता हैं मुझको वो नन्ही सी एक गुड़िया

इधर दौड़ती, उधर भागती

गुड़ियों के बीच खेलती

नन्ही सी, प्यारी सी गुड़िया वो

उड़ती  फिरती तितलियों की तरह जो

तो आंख मिचोली खेलती

पेड़ो के बीच कभी वो  ...

हाथों में गुलाल, कभी पिचकारी लिए

रंगों का अपने एक सैलाब लिए

या फिर फुलझड़ियों से आकृतियां बनाती हुई।

और फिर कभी सर्द भोर में कोहरे से छिपती निकलती

स्कूल की और जाते हुए। ..

या बरसात की पहली बूंदों में कागज़ की अपनी नावें

दौड़ाती हुई। ...

 

पर देखती हूँ उसे आज तो

दिल में इक टिस  सी उठती है

पकड़ना चाहती हुँ उसे तो

तितली बन उड़ जाती है

न जाने कहाँ खो जाती है

 

 

कहतें हैं बीता वक़्त

फिर कभी लौटता  नहीं

पर लौट जाने को बहुत मन  करता है

बचपन की उन गलियों में।

पल वो मासूमियत के

फिर एक बार जी लेने को

वो बिन माँगा अथाह प्यार पा लेने को

खुद को एक बार फिर ढून्ढ लेने को...

 saraswati  

 

 सुना  है  लुप्त  हो  गयीं  तुम ?

विशाल  पर्वोतें  के  ह्रदय  से  जब  तुम   निकली  थीं

नियति  तो  तय  यह    की  होगी  तुमनें

फिर   कहाँ  खो  गयीं  तुम ?

क्यूँ  खो  गयीं  तुम ?

 

 कोपलें  नव   जीवन  की

खिलीं  थीं  तुम्हारे  ही  गर्भ में

सभ्यता  ने  सांस  ली  थी

पहले  तुम्हारे  ही  आँचल  में

ब्रहित   और  विशाल

तुम  तो  जीवन  दायनी थीं

फिर   कहाँ  खो  गयीं  तुम ?

क्यूँ  खो  गयीं  तुम ?

 

 

 

 

 

अब कहते सुना कुछ लोगों को 

की तुम केवल एक मिथ्या थीं

केवल एक भ्रम...

क्या सच यही है?

लगता क्यूँ है की कहानी तुम्हारी 

जानी पहचानी है ;

नयी नहीं बहुत पुरानी है...

 

सदियों से लुप्त होती आयीं हैं कई सरस्वतियाँ

हमारे अपने घर आंगनों में

आहुति देती आयीं हैं

उमीदों और इचाओं की 

फ़र्ज़ और रिश्तों के होम्मों में  

 

कभी सीता बन परित्याग हुई   

दी अग्नि परीक्षा वर्चस्व

पुरषोत्तम किसी राम का बचाने को
कभी द्रौपदी बन
लगाईं गई दांव पर

उन निगाहबाणों द्वारा
त्याग ना सके मोह जो चन्द शतरंज की मौहर्रों का

 

सारांश  यही है shayad yahi जीवन का

अर्थ किसी जीवन को देने को  

अस्तित्व किसी को अपना मिटाना पड़ता है ...

महान कोई बन पाए 

उसकी खातिर

लुप्त किसी को होना पड़ता है...

  

ज़िक्र भी उनका मिलेगा

इतिहास के पन्नों में

इतिहास तो है वृत्तांत विजेताओं का

स्थान कहाँ है वहाँ पराजितों का

वहाँ पराजितों का...

 

एक नदी की कहानी

 

नदी की चंचलता तो चाही थी मैंने भी

वो बहाव, वो उन्मुक्तता

तो जैसे मेरी ही फितरत थी

सोचा था ...

हर बांध, हर पर्वत को लाँघ

मिल जाउंगी सागर में

सर्वस्व अपना देकर...

नियति जो यही थी मेरी

सच! यही नियति थी मेरी?

 

उदगम हुआ था जहां मेरा

वो पवित्र वादियाँ, वो समाँ,

महसूस किये थे मैंने ही तो

रवि ने रोज़ सुबह दूर पहाड़ियों से निकलकर

श्वेत बर्फ की चादर को पिघलाकर

डाला था उसे आचंल में मेरे ही

फिर किरणों  से अपनी नेहला कर

खेली थी आंख मिचोली लहरों पर मेरी ही ...

 

और दुर्गम वो पहाड़ियां 

जिनसे जब जब मैं गुज़री

कण कण अपना भेंट करतीं रहीं

देती रहीं मुझे विस्तार 

एक नया आकार ...

राह तो मेरी भी खूबसूरत है

फिर उस से मिलने की ऐसी जल्दी क्यूँ?

 

 उस से भी मिलना है

उस में ही घुलना है

पर पहले

थके राहगीर की

प्यास थोड़ी भुजा लूँ

बंजरों में

अंकुर कुछ खिलां लूँ

वीरानों में शहर कुछ और बसा दूँ

पाप कुछ और आंचल में अपने समेट लूँ

जीवन की लो जला लूँ

 

जानती हूँ सागर बहुत विशाल है

मुझ सी कई नदियों का संन्गम है

सागर में समां जाने की नियति जिनकी तय है

पर क्या सागर यह जानता है

की छोटी छोटी यह नदियाँ

गर उसमें मिलें

तो अस्तितिव उसका भी सागर सा हो?

यह छोटी छोटी नदियाँ

आहुति अपनी देकर

अस्तितिव अपना खोकर

अस्तितिव उसका युगों से हैं बना रहीं

काश वो यह जनता...

काश वो यह मानता...

 

Bachpan

  Kaun ho tum Kya ho tum Poochoge to nahin   Humse kabhi Kyunki… Bayaan raaz hote nahin Main aur tum Tum aur main Ishq sifar sa Safar ruhani...

Khat Tumhaare