भ्रम्र और् हक़ीक़त्
मै और् तुम्
एक् भ्रम् या फिर् हक़ीक़त्
दिखता हो जो
छू सकतें हो जिसे
है गर् हक़ीक़त् वही
तो मेरा तुम्हारा
तो कोइ अस्तितिव् ही नही...
पर् फिर्
क्यु न होकर् भी
एह्सास् तुम्हारे होने का
होता है अक्सर्
और् मिलकर भी कभी
दर्मियान् होते है फ़ासले कई ...
मै और् तुम्
तुम् और् मै
न भ्रम्, न वहम्
बस् एक् हक़ीक़त्
कुछ मुतलिफ़् सी...
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