बचपन
दिल के कोने में मेरे कहीं
मासूम सा इक बच्चा रहता है
तेज़ी से गुज़ारे इन सालों को
जो कुछ कश्मकशमकश से देखता है
भोली सी मुस्कान लिये
जबरन ही मुझे बचपन में मेरे खींच ले जाता
है
दिल के कोने में। ...
याद दिलाता हैं मुझको वो नन्ही सी एक गुड़िया
इधर दौड़ती, उधर भागती
गुड़ियों के बीच खेलती
नन्ही सी, प्यारी सी गुड़िया वो
उड़ती
फिरती तितलियों की तरह जो
तो आंख मिचोली खेलती
पेड़ो के बीच कभी वो ...
हाथों में गुलाल, कभी पिचकारी लिए
रंगों का अपने एक सैलाब लिए
या फिर फुलझड़ियों से आकृतियां बनाती हुई।
और फिर कभी सर्द भोर में कोहरे से छिपती निकलती
स्कूल की और जाते हुए। ..
या बरसात की पहली बूंदों में कागज़ की अपनी
नावें
दौड़ाती हुई। ...
पर देखती हूँ उसे आज तो
दिल में इक टिस सी उठती है
पकड़ना चाहती हुँ उसे तो
तितली बन उड़ जाती है
न जाने कहाँ खो जाती है
कहतें हैं बीता वक़्त
फिर कभी लौटता नहीं
पर लौट जाने को बहुत मन करता है
बचपन की उन गलियों में।
पल वो मासूमियत के
फिर एक बार जी लेने को
वो बिन माँगा अथाह प्यार पा लेने को
खुद को एक बार फिर ढून्ढ लेने को...
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